दंतेवाड़ा। आम, इमली, महुआ, चिरौंजी, साल-सागौन और हजारों प्रजातियों के पेड़ो वाले बस्तर की पहचान दो दसकों से वीर भूमि के रूप में होती है, या यूं कहा जाए शांत हरा-भरा और वन संपदा से परिपूर्ण बस्तर वीर भूमि में बदल गया। विकास के नए आयामों को गढ़ने के बाद भी देश के मानस पटल पर लाल आतंक की तस्वीर उभर कर सामने आती है। बात की जाए दंतेवाड़ा की तो उसने कई जख्म सीने पर खाए है, वे आज भी हरें हैं। तमाम जख्म को अपने सीने मेें लेकर भी दंतेवाड़ा बदलने को आतुर है। इस बार भोले-भाले और सहज आदिवासियों को प्रशासन से सीधे तौर पर जोड़ने की जो पहल की गई है, वह वाकई में अनूठी है।

प्रकृति उपासक आदिवासियों के लिए देवगुड़ी कायाकल्प योजना ने बड़े बदलाव के संकेत दिए है। दंतेवाड़ा कलेक्टर दीपक सोनी ने सहज-सरल आदिवासियों को समृद्धि संस्कृति और सभ्यता को सर्वोपरि माना और उसे सहेजने का प्रयास किया है। इस पहल ने आदिवासियों के मन में प्रशासन के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर तैयार किया है। अब जिले के किसी भी कोने में योजना धरातल पर उतर रही है।
देवगुड़ी कायाकल्प योजना से प्रशासन ने उस नब्ज को पकड़ा है, जहां से बस्तर विकास के पथ पर अग्रसर हो रहा है। इसी तरह के तमाम मुद्दों पर बस्तर क्रांति ने कलेक्टर दीपक सोनी से विशेष चर्चा की। यहां के युवाओं और आदिवासियों को रोजगार देना और महिलाओं को स्वावलंबी बनाने की परिकल्पना का पूरा मैप प्रशासन तैयार कर चुका है।
सवाल: आदिवासी परिवारों को आर्थिक रुप से मजबूत करने के लिए क्या प्लान है?
जवाब: योजनाओं का सीधा लाभ आदिवासी परिवारों को मिल रहा है। रोजगार और स्वरोजगार से जोड़ा जा रहा है। किसान उत्पादक संगठन काम कर रहे है। वो चाहे वनोपज से तैयार उत्पादों से पैसा कमाएं या डेनेक्स गारमेंट्स फैक्ट्री में काम करके। आदिवासियों की संस्कृति और सभ्यता को ध्यान में रखकर काम किया जा रहा है। उनका कोई भी उत्पादन हो वो ब्रांड बने। अब बस्तर के परिधान देश में ही नहीं विदेश में भी समृद्धि सस्कृति की पहचान बन रहे हैं।

सवाल: डेनेक्स गारमेंट्स फैक्ट्री से कितने परिवारों को आर्थिक रुप से मजबूत करने का लक्ष्य है। अभी कितने लोग काम कर रहे हैं? क्या डेनेक्स ब्रांड की बढ़ी डिमांड को देखते हुए नई ब्रांच खोली जाएंगी?
जवाब: डेनेक्स ब्रांड बन चुका है। बस्तर का परिधान देश के अन्य शहरों में बेहद पसंद किया जा रहा है। हारम के अतिरिक्त तीन नई शाखाएं खोली जाएंगी। बारसूर में भी जल्द ही इसकी शुरूआत होगी। लगभग 1200 परिवारों को रोजगार देने का प्लान है। फिलहाल अभी गारमेंट्स फैक्ट्री में 150 से अधिक लोग काम कर रहे हैं। समृद्ध संस्कृति, सभ्यता के धनी आदिवासी आर्थिक रूप से भी मजबूत हो रहें हैं।
सवाल: दंतेवाड़ा जिले में कई पर्यटन स्थल है, इनको बढ़ावा देने के लिए कोई मास्टर प्लान तैयार किया जा रहा है क्या?
जवाब: हां पर्यटन को लेकर प्रशासन बेहद संजीदा है। दंतेवाड़ा, बारसूर और ढोलकाल पर फोकस किया जा रहा है। दंतेवाड़ा में डंकनी और शंखनी नदी का सौदर्यीकरण होगा। नदी तट को बेहतर तरीके से संवारा जाएगा। पर्यटक आएं तो अपना समय व्यतीत कर यहां से बेहद रोचक यादों के साथ वापस लौटें। इसी तरह बारसूर के तालाब का भी सौंदर्यीकरण होगा। यहां पर्यटकों के रुकने के लिए ट्रायबल होम स्टे का भी प्लान है। जल्द ही यहां ट्रायबल म्यूजियम भी तैयार होगा। वन विभाग के साथ ढोलकाल पर और फोकस किया जाएगा। सात धार सहित अन्य जगहों पर भी प्रशासन की नजर है।

सवाल: देवगुड़ी कायाकल्प स्थल ने पूरे राज्य में सुर्खियां बटोरी है। इस कॉनसेप्ट के पीछे प्रशासन की मंशा क्या थी। क्या जिले की सभी पंचायतों में देवगुड़ी कायाकल्प हो चुका है?
जवाब: सबसे पहले प्रशासन को यह जानना होगा कि जिले की आत्मा क्या है? कैसे सरल और सहज आदिवासियों को प्रशासन की मुख्यधारा से जोड़ा जाए? आदिवासी प्रकृति उपासक है। हर गांव में देवी-देवता है। सदियों से पूजा अर्चना करता आ रहा है। उनके देवगुड़ी स्थलों का कायाकल्प करने का उद्देश्य सीधे तौर पर प्रशासन को उनसे जुड़ना है। आदिवासी भी प्रशासन पर अब ज्यादा भरोसा कर रहा है।
सवाल: शहर के दो बड़े मुद्दे है। बस स्टैंड के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। यात्रियों और शहर वासियों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। दूसरा रेलवे क्रॉसिंग पर लगने वाले जाम से मानव श्रम प्रभावित होता है। इन दोनों बड़े मुद्दों से जिले वासियों को कब निजात मिलेगा?
जवाब: बस स्टैंड केे लिए शहर की दो जगहों को देखा गया है। पातररास और कतियाररास। इन दोनों जगहों में से एक को चुनकर जल्द ही बस स्टैंड को शिफ्ट किया जाएगा। यह कार्य प्रोसेस में है। वहीं रेलवे अंडर ग्राउंड ब्रिज का सर्वे किया जा चुका है। रेलवे को फंड भी दे दिया गया है। एक वर्ष के अंदर इस समस्या से भी निजात मिल जाएगा।
सवाल: कोरोना बड़ा संकट है। देश ने भयाभह तस्वीरेें देखी है। दंतेवाड़ा सुदूर इलाका है, यहां स्वास्थ्य सुविधाओं की क्या स्थिति है।
जवाब: इस महामारी से निपटने के लिए यहां का नागरिक ही बतौर योद्धा लड़ता नजर आ रहा है। इस चुनौती में टास्क फोर्स,फ्रंट लाइन वर्कर तो खड़े ही रहे। अंदरूनी इलाकों में जागरुकता दल का गठन किया गया। लोगों को बीमारी के प्रति जागरुक किया गया। साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने पर भी जोर रहा है। नए 1400 बेड तैयार किए गए। 336 ऑक्सीजन बेड और 30 आईसीयू बेड उपलब्ध हैं। कोरोना मरीजों के लिए फ्री सिटी स्कैन सेवा दी जा रही है। ऑक्सीजन सिलेंडर भी पर्याप्त मात्रा में है। स्वास्थ्य विभाग की पूरी टीम मुस्तैद है। इसके बाद भी खेद है जिले से हमने अभी तक 22 लोगों को खो दिया है।
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