संपादक अब्दुल हमीद सिद्दीकी के साथ विशेष संवाददाता पुष्पेंद्र सिंह की बस्तरक्रान्ति के लिए बस्तर सांसद दीपक बैज से रूबरू
युवा अवस्था से ही राजनीति में रुचि पैदा हो गई। छोटी छोटी जरूरतों के लिए आदिवासी भाई-बहनों को कार्यालयों के चक्कर काटते और उनको मायूस लौटते देखते थे। प्राथमिक शिक्षा के दौरान मन में सपना पाले बैठे थे ,कि शिक्षक बनना है। ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ी तो बस्तर की समस्याओं ने झकझोरना शुरू कर दिया। पिता तो पटवारी थे। दादा का झुकाव कांग्रेस दल की ओर शुरू से ही रहा।
उसी दल को अपना मान लिया। इसके बाद हॉस्टल और कॉलेज के दिनों में राजनीति के मैदान में उतर गया। कांग्रेस संगठन से जुडा रहा। संगठन में काम को देखते हुए बस्तर टाईगर महेन्द्र कर्मा ने उन्हें जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने के लिए कहा। इतना ही नहीं खुद भी प्रचार प्रसार करने के लिए आए और आर्थिक मदद भी की। उनके आर्शीवाद से जनता की सेवा करने का मौका मिला।
2005 से 2010 तक जिला पंचायत सदस्य रहा। यही वो राजनैतिक मोड़ है, जहां से मुड़ा नहीं , न ही मुड़कर देखा। सिर्फ लोगों को देखा , उनकी तकलीफेें और समस्याएं देखीं। लोगों के बीच जाते रहे और काम करते रहे। जनता ने भी खूब प्यार दिया। दो बार विधायक बना और अब सांसद हूं। अब दिल्ली तक बस्तर की आवाज गूंज रही है। मेरे जहन में एक ही बात घर कर रह गई है।

बस्तर जैसी अमीर धरती के लोग गरीब क्यों है? कब तक गरीब बन कर रहेगें। वे क्यों नही हवाई यात्रा करें? आखिर क्यों नही रेल में जाएगें। कब तक उन्हें उपेक्षित रखा जाएगा। जनता ने चुन कर भेजा तो सदन के पटल पर बस्तर के इस बेटे की आवाज तो गूजेंगी। बस्तर के खनिज का दोहन हो रहा है। ट्रांसपोर्टिंंग का रेलवे को प्रतिदिन 300 करोड़ देते है। महीने मेंं 3600 करोड़ दे रहे हैं।
आदिवासियों के खनिज का दोहन हो रहा है और वे ही संसाधनों और विकास से अछूते रहे। यहां की जो सुंदरता है, समृद्धि , संस्कृति और सभ्यता है। इन तस्वीरों को देश के मानस पटल पर क्यों नहीं आने दिए जा रहा है। बंदूक,बम, गोली और बारूद के रूप में ही पहचान बन कर रह गई। बस्तर का यही अंधकार छांटना है। इसके लिए दो ही रास्ते है। पहला रास्ता विकास का है और दूसरा रास्ता बात-चीत का है। हमारी सरकार इन दोनों कामों को बखूबी करने में लगी हुई है।
सवाल: आप कहां के रहने वाले है और शिक्षा-दीक्षा कहां से हुई? परिवार में कितने लोग है?
जवाब: चित्रकोट विधान सभा में एक गांव गढ़िया है। मूल रूप से वहीं का रहना वाला हूं। परिवार में मां ,भाई, बहन, भाभी और पत्नी हैं। भाई हर्रा कोड़ेर में अध्यापक है। मां पिता से दूर रह कर छात्रावास में रह कर पढ़ाई की है। कॉलेज में एलएलबी की पढ़ाई के दौरान हीं राजनैतिक पाठशाला में भी कदम रख दिया था। प्राथमिक शिक्षा तो गांव में ही हुई। पिता पटवारी थे। परिवार खेती किसानी करते हैं। आज भी हम गांव पहुंचते हैं, तो खेतों के चक्कर काटना पहला काम होता है।
सवाल: जिला पंचायत सदस्य से सांसद बनने तक के सफर के बारे में बताएं?
जवाब: सांसद बनने के लिए तो कभी सोचा ही नही था। पार्टी के आलाकमान ने भरोसा दिखाया और प्रदेश संगठन के पदाधिकारियों का भी हाथ रहा। विधायक रहने के दौरान टिकिट दी और बस्तर लोक सभा से सांसद बन गया। जनता से प्यार मिला, उनके आर्शीवाद के बिना तो यह संभव ही नहीं था। मेरे राजनैतिक कैरियर में हमारे अग्रज स्व महेन्द्रकर्मा का बड़ा हाथ था। उन्होंने 2005 में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़वाया। उन्होंने प्रचार-प्रसार भी किया। जो मदद हो सकती थी, उससे ज्यादा हमें उनसे मिला। 2010 में पार्टी ने विधायक पद का दावेदार बनाया। हम जीते भी, लेकिन हमारी पार्टी सत्ता में नहीं आ सकी। विपक्ष में रह कर जनता के लिए काम किया। बस्तर के मुद्दों को विधान सभा में रखते रहे। एक बार फिर इसी विधान सभा से मौका मिला और जीते और कांग्रेस ने सरकार बनाई। इसी दौरान लोक सभा का चुनाव हुआ तो विधायक रहते सांसद बन गए।
सवाल: कोरोनाकाल में अर्थ व्यवस्था एकदम निचले पायदान पर आ चुकी है। या यू कहें ध्वस्त हो चुकी है। सभी राज्यों की हालत खराब है। ऐसी स्थिति में छत्तीसगढ़ को आप कहां देख रहे हैं?
जवाब: कोरोना काल में पूरा देश आर्थिक मंदी से जूझ रहा है, लेकिन भूपेश सरकार मजबूती से खड़ी है। देशी जुगाड़ और छत्तीसगढ़िया तरीके से अर्थव्यवस्था को मजबूत बना कर रखा है। पूर्व प्रधानमंत्री अर्थशास्त्री श्री मनमोहन सिंह के बाद यहां प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल की जितनी तारीफ की जाए कम है। उन्होंने लोगों को सीधे काम से जोड़ा। गांव के लोगों को गांव में ही काम दिया। किसानों और पशु पालकों ने गौठान में दो रुपए किलो गोबर बेचा। इधर वनोपज पर भी काम किया। प्रासेसिंग युनिट शुरू करवाई। इमली, आम महुआ के उत्पाद यही बन रहे हैं। महिलाएं काम कर रही है। गारमेंट्स फैक्ट्री में सैकड़ों परिवार का कर आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं। जमीन से जुड़े कामों को भूपेश सरकार ने तरजीह दी। यही वजह है हम आर्थिक मंदी से उबर पाए।

सवाल: भाजपा कहती है भूपेश सरकार के ढाई साल पूरे हो गए और जनता से किए गए वादे पूरे नहीं हुए।
जवाब: हम 36 बिंदुओं को लेकर जनता के बीच चुनावी संग्राम में उतरे थे। अहम था किसानों का मुद्ददा। कर्ज माफी से लेकर धान खरीदी तक। सभी वादों को पूरा किया जा चुका है। भाजपा 15 साल सत्ता में रही किसानों के हित मेें काम नहीं किया। हमने 2500 रुपए धान खरीदी का समर्थन मूल्य दिया। इस सफलता को देख केंद्र सरकार ने प्रदेश की सरकार पर दबाव डाला। पहले मुख्यमंत्री है, केंद्र सरकार ने दबाव को दरकिनार कर बीच का रास्ता निकाला। जो वादा किसानों से किया उसे पूरा किया जा रहा है। लगभग 16 बिंदुओं को पूरा कर चुके है। अभी ढाई साल बचा है, उनको भी शत प्रतिशत पूरा करेगें। ये जमीन पर काम करने वाली सरकार है। एक बार फिर जनता के बीच में जाएगें। जिस तरह का जनता ने विश्वास जताया है, उसी तरह से सत्ता में आएगें। हमने जनता के भरोसे को तोड़ा नहीं है कायम रखा है।
सवाल: बस्तर की आवाज सदन की पटल पर कम ही गूंजी है, आपके जाने के बाद शोर होते दिख रहा है। सदन के पटल किन-किन अहम मुद्दों को रखा है। अभी तक कितने प्रश्न पूछ चुके है?
जवाब: बस्तर के अब तक के पूरे सांसदों ने इतने सवाल सदन की पटल पर नही रखे, जितने हमने दो साल में रख दिए। अब तक करीब 120 से अधिक सवाल पूछ चुका हूं। सवाल क्यों न पुछूं। जनता ने इसी कार्य के लिए तो दिल्ली पहुंचाया है। बस्तर जैसी अमीर धरती के लोग गरीब क्यों है? कब तक गरीब बन कर रहेगें। वे क्यों नही हवाई यात्रा करें? आखिर क्यों नही रेल में जाएगें। कब तक उपेक्षित रखा जाएगा। जनता ने चुन कर भेजा तो सदन के पटल पर बस्तर के इस बेटे की आवाज तो गूजेंगी। बस्तर के खनिज का दोहन हो रहा है। ट्रांसपोर्टिंंग का रेलवे को प्रतिदिन 300 करोड़ देते है। महीने मेंं 3600 करोड़ दे रहे हैं। आदिवासियों के खनिज का दोहन हो रहा है और वे ही संसाधनों और विकास से अछूते रहे। यहां की जो सुदरता है, समृद्धि संस्कृति और सभ्यता है। इन तस्वीरों को देश के मानस पटल पर क्यों नहीं आने दिए जा रहा है। बंदूक,बम, गोली और बारूद के रूप में ही पहचान बन कर रह गई।

सवाल: बीजापुर के सिलगेर मसले पर सरकार की जांच कमेटी का आपको अध्यक्ष बनाया गया। विपक्षी दल शोर कर रहे हैं कि ग्रामीणों पर गोली चलाई गई। जांच में क्या पाया?
जवाब: पहली सरकार है, जिसने अपने नुमाइंदों को जांच करने के लिए भेजा। इतना ही नहीं घटना स्थल पर विधायकों के साथ पहुंचे। सिलगेर में घटना हुई उसका सच जानने का प्रयास किया। आखिर ऐसा क्यों हुआ, गोली कहां से चली? आंदोलन स्थल पर निडरता से पहुंचे। आंदोलन कर रहे लोगों से बात की। सिलेगेर में आदोलन कर रहे लोगों से कहा, शांति के लिए कहीं भी किसी भी स्तर पर सरकार जाने के लिए तैयार है। बीजापुर में बुलाओगे तो बीजापुर में आएंगे। बम गोली बंदूक रास्ता नहीं है। विकास के हथियार के साथ शांति वार्ता भी करने के लिए तैयार है। पूरे मामले पर मजिस्ट्रियल जांच चल रही है।
सवाल: नंदराज पहाड़ मामले पर आदिवासी सरकार से खफा रहा। उनकी मांगों को पूरा नहीं किया गया?
जवाब: बस्तर का आदिवासी सरकार से खुश है। उसे भरोसा है यहां उनकी बात सुनी जाएगी। सिलगेर में भी सरकार के लोग पहुंचे और नंदराज पहाड़ मामले में भी सरकार ने पहल की। नंदराज पहाड़ मामले में आदिवासियों ने तीन बिंदुओं पर जांच की मांग की। तीनों बिदुओं की जांच हुई। उन्होंने जो कहा नंदराज पहाड़ पर वही हुआ। फर्जी ग्राम सभा की जांच हुई तो वाकई में सच था कि फर्जी हस्ताक्षर हुए थे। ग्राम सभा का फर्जी होना ही पूरे मामले का शून्य कर देता है। आदिवासी इस मामले में जीते। हम जनता को एक भरोसा दिलाते है भूपेश सरकार आदिवासियों के खिलाफ कोई कार्य नही करेगी।
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