सुनो! प्रभारी मंत्री लखमा जी आदिवासी बच्चों के हक पर
डाका चल रहा दंतेवाड़ा आश्रमों में, अधिकारी भी है मौन
एसडीएम कार्यालय और आदिवासी आयुक्त कार्यालय से जांच जारी पर नतीजां ढाक के तीन पात
दंतेवाड़ा। थोपे गए मंडल संयोजक पर भ्रष्टाचार की उंगली उठने के बाद भी मामला ठंठे वस्ते में जाता दिख रहा है। हालांकि प्रशासनिक दो ऐजेंसी से जांच करवाई जा रही है। अभी तक जांच का नतीजा सिफर है। आरोप लगाने वाला अधीक्षक सच्चा है या मंडल संयोजक दीपेंद्र शर्मा (सहायक शिक्षक वर्ग-3) जिसकी पोस्टिंग गीदम ब्लॉक के गरदापारा में है। दीपेंद्र शर्मा ने जो दस्तावेज दंडाधिकारी एसडीएम के सामने जो दस्तावेज प्रस्तुत किए है, वे अधीक्षक की भ्रष्टाचार की कहानी को बयां कर रहे हैं। वहीं अधीक्षकों ने जो उगाही करने के आरोप दीपेंद्र शर्मा पर लगाए है वे भी बेहद गंभीर है। इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच एक ही बात निकल कर सामने आती है, कि आश्रमों में आदिवासी छात्रों के हक पर डाका चल रहा है। खुलेआम चल रही इस लूट पर अधिकारी जांच का हवाला दे रहे हैं। इस जिले के प्रभारी मंत्री कावासी का लखमा का मां दंतेश्वरी की नगरी में पहला दौरा है। उनके प्रभारी जिले में आदिवसी छात्रों के हक पर डाका की कहानी उजागर हुई है। इस मामले को किसी तरह उनके संज्ञान में नही आने देने की जुगत में अधिकारी लग गए है।
अब राजैनितिक वरदहस्त की कहानी पर नजर
आदिवासी आयुक्त कार्यालय से जुड़े सूत्रों का दावा है कि दोनों और राज्य स्तरीय राजनैतिक संरक्षण प्राप्त लोग है। इस लिए अधिकाकिरयों के प्रशासनिक अनुशासन का भी भय नहीं है। सच तो ये है कि मंडल संयोजक बनने के दौरान दीपेंद्र शर्मा ने शिक्षा विभाग से एनओसी भी नहीं ली। आदिवासी आयुक्त कार्यालय से आदेश करवाया गया। अपने वरिष्ठ अधिकारी को ठेंगा दिखाया और बन गए मंडल संयोजक। ये कहानी दीपेंद्र शर्मा की ही नहीं है, तीन और मंडल संयोजक इसी तरह की सीढ़ी को चढे है।
भाजपा सरकार से लेकर कांग्रेस तक
संलग्री करण रद्द करने का हुआ हल्ला
सरकारें बदल गई। 15 साल सत्ता को भोगने वाली भाजपा के कार्यकाल में भी शिक्षकों के संलग्रीकरण रद्द करने का हल्ला खूब हुआ। इसके बाद जनता भाजपा की नीति और नियमों से ऊब कर कांग्रेस को बागडौर सौंपी। सत्ता में आने के बाद शासन से कई बार पत्र आया जो भी शिक्षक अटैच में सेवाए दे रहे हैं, उन्हें उनके मूल पदस्थापना पर भेजा जाए। इस आदेश के बाद जिला शिक्षा अधिकारी ने उन शिक्षकों के लिए सबंधित कार्यालयों में पत्र लिखा, लेकिन फिर से वही हनक भरी कहानी सामने आई। राजनेताओं के संरक्षण प्राप्त लोग टस से मस नहीं हुए।
वर्सन
मेरे यहां से कोई एनओसी नहीं ली गई है। मंडल संयोजक बनने के बाद सीधा आदेश आया कि फलां-फला व्यक्ति बतौर मंडल संयोजक सेवाएं देगें। हां संलग्रीकरण मामले में कई बार पत्र लिखा, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। जब-जब शासन से पत्र आया और इतना ही नहीं स्कूलों में शिक्षकों की कमी पर पढाने की जरूरत पड़ी तब भी पत्र लिखा है।
राजेश कर्मा, जिला शिक्षा अधिकारी दंतेवाड़ा
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